Tuesday, 15th July 2025

छत्तीसगढ़ / सुर्खियां बटोर रही सीटों पर अब जंग आर-पार की

Fri, Nov 16, 2018 7:09 PM

 

  • कोटा में अजती जोगी की साख दांव पर, कांग्रेस को किला बचाने की फिक्र
  • खसरिया में भाजपा के ओपी चौधरी और कांग्रेस के उमेश पटेल के बीच कांटे का मुकाबला
  • दुर्ग ग्रामीण में त्रिकोणीय मुकाबला

 

रायपुर . दूसरे चरण की 72 सीटाें में कुछ ऐसी भी हैं, जिन पर चुनाव घोषित होने के पहले से पूरे प्रदेश की नजर है। तो कुछ दलों के टिकट फाइनल के बाद एकाएक सुर्खियों में आ गईं। दैनिक भास्कर की सीरीज ‘दिलचस्प दंगल’ में पढ़िए कुछ ऐसी ही विधानसभाओं की रिपोर्ट। पहली किस्त में जानिए कि कोटा, खरसिया और दुर्ग ग्रामीण सीट में चुनावी जंग किस तरह रोचक मोड़ ले चुकी है। कोटा में कांग्रेस से ही तीन बार की विधायक रहीं रेणु जोगी की उलझन इस बार कांग्रेस के विभाेर सिंह और भाजपा के काशी साहू ने बढ़ा दी है। खरसिया में पूर्व कलेक्टर ओपी चौधरी ने कांग्रेस की परंपरागत इस सीट को टक्कर में खड़ा किया है। उनके सामने कांग्रेस से उमेश पटेल हैं। इधर, दुर्ग ग्रामीण में दो साहुओं के बीच रोचक मुकाबला है।

 

विपुल गुप्ता, कोटा.  ये कोटा है...  जोगी की साख, कांग्रेस का इतिहास दांव पर, भाजपा के लिए मौका

 

कोटा का चुनाव इसलिए सबसे रोचक है, क्योंकि पहली बार अलग पार्टी बनाकर लड़ रहे जोगी की साख का सवाल है। कांग्रेस के सामने जीत का इतिहास बरकरार रखने की चुनौती है तो भाजपा के सामने जीतकर रिकॉर्ड बनाने का मौका। हम ग्राउंड पर पहुंचे। एक युवक ने कुछ यूं गणित समझाया हमें। देखिए... कांग्रेस से रेणु जोगी को पिछली बार 55,300 वोट मिले थे। भाजपा के काशी साहू को 53,300 वोट। यानी कुल 5000 वोट से जीती थी कांग्रेस। अब रेणु जोगी जनता कांग्रेस से हैं। कांग्रेस से नया चेहरा विभोर सिंह हैं। मान लें कि जोगी को खुद के कोटे से 10 हजार वोट मिले होंगे और बाकी कांग्रेस कोटे से। तब भी कांग्रेस के वोट तो 45 हजार बचे। जबकि काशी और बीजेपी तो वही है। इसलिए माहौल भाजपा के पक्ष में है...। तभी वहां मौजूद एक बुजुर्ग बोले, ऐसा कुछ नहीं है। गांवों में लोग पढ़े-लिखे नहीं हैं। वे तो सिर्फ पंजा को वोट देते हैं। उनके लिए तो आज भी इंदिरा गांधी ही प्रधानमंत्री हैं। तभी तो आजादी के बाद से यहां कांग्रेस कभी नहीं हारी। 

 

शहर से लेकर गांवों तक... मुकाबला टक्कर का : एक गांव में पहुंचे। यहां बैठे कुछ लोगों जैसे ही छेड़ा- बोले, हमारे यहां तो सब साहब (अजीत जोगी को वे इसी नाम से बुलाते हैं) को ही जानते हैं। और मैडम...? इस पर बोले- हां, वे भी तो जोगी ही हैं। यही कोटा सीट है... सभी जानते हैं कि मुकाबला कड़ा है। एक और खासियत ये कि यहां ऐसे लोग भी मिल जाएंगे, जो पंजे पर वोट डालकर इंदिरा गांधी को याद कर लेते हैं। या ऐसे लोग जो पंजा पर वोट डालकर या साहब (जोगी) को जितवाने का दावा करें। कांग्रेस की सीट ऐसे ही नहीं कहते इसे। पिछली बार 71.50 फीसदी वोट पड़े थे। नए वोट किसे मिलेंगे? बस, इसी सवाल में जीत का अंक छिपा है। 

 

बिखरी हुई सीट है... नए जिले का मुद्दा भी मंद पड़ गया : अब थोड़ी चर्चा क्षेत्र की हो जाए। सबसे बिखरी सीट भी है। पेंड्रा, गौरेला, कोटा और रतनपुर में जो बंटी है। पेंड्रा और गौरेला दशकों से जिला बनने की लड़ाई लड़ रहे हैं। सरकार से भी और आपस में भी। जोगी ने एक नए जिले का नाम सुझाकर कुछ हल की कोशिश की कि नाम पेंड्रा-गौरेला-मरवाही रखा जाए। इससे मामला सुलझने की बजाय और उलझ गया। अब इस मुद्दे को कोई नहीं छेड़ता। इसके बाद भी चारों क्षेत्रों की समस्याएं अलग हैं। इसलिए भी मुद्दों पर कोई चुनाव हो नहीं सकता। ज्यादातर इलाका जंगल का है और आदिवासी वोटर। पलायन और रोजगार बड़ी समस्या।

 

जितेंद्र शर्मा, रायगढ़ . खरसिया में एक ने कलेक्टरी छोड़ी, दूसरे ने इंजीनियरी... समानताएं भी चर्चा में 

 

कलेक्टरी छोड़ ओमप्रकाश चौधरी ने जैसे ही भाजपा का दुपट्‌टा गले में डाला, खरसिया सीट सुर्खियों में आ गई। एंट्री के साथ ही सीधे जनसंपर्क शुरू। तब तक कांग्रेस शून्य पर खड़ी थी। कुछ रोज बाद उमेश पटेल भी मैदान में कूदे। एकतरफा बने माहौल ने अब रोचक मोड़ ले लिया। उमेश भी 2013 में साॅफ्टवेयर इंजीनियर की नौकरी छोड़कर चुनावी समर में कूदे थे। नंदेली उमेश का तो बायंग ओपी का गांव है। दोनों गांव आसपास ही हैं। दोनों युवा हैं और अघरिया समाज से हैं। ओपी की मां कौशल्या बेटे लिए वोट मांग रहीं हैं तो उमेश की मां नीला पटेल व भाभी भावना गांव-गांव दस्तक दे रही हैं। चर्चा तो बोतल्दा हाउस यानी बोतल्दा के बालकराम पटेल के परिवार की भी है, जहां से ओपी-उमेश की रिश्तेदारी है। बालकराम खुद भाजपा में आ गए, लेकिन बेटे अजय अब भी उमेश के साथ हैं। 

 

गांवों में बकरा भात और दावत, शहरों में सभाएं तेज : गांव और मोहल्लों में दावत और बकरा भात का दौर चल रहा है। तो स्टार प्रचारकों के मामले में भाजपा आगे है। कांग्रेस ने सिर्फ राहुल गांधी की सभा कराई है। लेकिन आश्वस्त हैं जीत के प्रति। भाजपा ने अभिनेत्री हेमा मालिनी, मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और छालीवुड के अनुज शर्मा की सभाएं करवाईं। राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह भी आने वाले हैं। 

 

धान केंद्रों के सूनेपन पर भी दोनों दलों की सियासत : खरसिया शहर, आसपास के गांव और बरगढ़खोला में बंटी इस सीट के वोटरों का मन भांपना आसान नहीं है। ऊपरी प्रचार भी भ्रमित करता है। परिवर्तन की बात तो है लेकिन सत्ता के खिलाफ या विधायक के... यह कहना जल्दबाजी होगी। धान खरीदी केंद्रों में अभी धान का आवक नहीं के बराबर है। कांग्रेसी कहते हैं, ऐसा हमारी घोषणा से हो रहा है, क्याेंकि किसानों को सत्ता बदलने के बाद धान का रेट बढ़ने की उम्मीद है। भाजपा का तर्क है धान अभी खलिहान तक नहीं पहुंचा है तो खरीदी केंद्रों में कैसे पहुंचे। दोनों दलों का अपना-अपना तर्क है। लेकिन मतदाता को पढ़ना सबके लिए मुश्किल हो रहा है।

 

राजकुमार भगत, भिलाई. दुर्ग ग्रामीण में दोनों दलों ने महिलाओं के टिकट काटे, इनके कोप से बचना चुनौती

 

वोटिंग से ठीक 6 दिन पहले यानी बुधवार को भिलाई में पूर्व विधायक प्रतिमा चंद्राकर ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को मंच पर चिट्ठी दी और आंसू पोंछते हुए वापस अपनी सीट पर जा बैठीं। बस, उनका ऐसा करना था कि राजनीतिक समीकरण बदलने की अटकलों ने जोर पकड़ लिया है। इधर, भाजपा से मंत्री रमशीला साहू का टिकट कटने से उनके गिने-चुने समर्थक भी कहीं नजर नहीं आ रहे हैं। ऐसे में दोनों महिला नेत्रियों की नाराजगी को साधना दोनों दलों की चुनौती है। प्रतिमा के इस कदम से अचानक सिम्पैथी का फैक्टर हावी हो गया है। दरअसल, जिले में साहू समाज से किसी भी प्रत्याशी को कांग्रेस का टिकट न मिलने पर विरोध के बाद उनका टिकट कट गया। खुद राहुल ने सांसद ताम्रध्वज साहू से फोन पर बात कर चुनाव लड़ने के लिए तैयार किया। कुल मिलाकर मंच पर हुए हाईवोल्टेज पॉलिटिकल ड्रामे ने चुनावी समीकरण उलझा दिए हैं। बड़े तबके में यह भी चर्चा है कि ताम्रध्वज चुनाव जीतने के बाद लोकसभा चुनाव लड़ सकते हैं। दूसरी ओर भाजपा प्रत्याशी जागेश्वर साहू पर पैराशूट प्रत्याशी का लेवल लगा है। यहां भाजपा भितरघात से जूझ रही है।

 

समाज कई हिस्सों में बंटा इसलिए संघर्ष त्रिकोणीय : एससी और एसटी वोटर भी यहां दो हिस्सों में बंटा नजर आ रहा है। एक पक्ष भाजपा के साथ तो दूसरा पक्ष कांग्रेस के साथ है। जबकि पहले यहां साहू वोटर बनाम कुर्मी व अन्य का संघर्ष देखने को मिलता था। दोनों प्रत्याशी साहू हैं, इसलिए संघर्ष एक, दो नहीं बल्कि त्रिपक्षीय नजर आ रहा है। इससे कुर्मी वोटरों की नाराजगी बढ़ गई है। ऐसे में ताम्रध्वज को भावनाओं के ज्वार से निपटकर डैमेज कंट्रोल करना होगा। इधर, रमशीला की खामोशी ने भी भाजपा की धड़कनें तेज कर रखी हैं।  

 

साहू और कुर्मी वोटों का समीकरण एक बार फिर हावी : 2008 में परिसीमन होने के बाद अस्तित्व में आई दुर्ग ग्रामीण सीट पर साहू और कुर्मी वोटों का जातीय समीकरण हावी है। यहां से भाजपा ने पूर्व मंत्री जागेश्वर साहू को प्रत्याशी बनाया है। इसके कारण साहू समाज के वोटर दो भागों में बंट गए हैं। यही हाल कुर्मी समाज का है। प्रतिमा का टिकट कटने से समाज का नाराज धड़ा निर्दलीय उम्मीदवार चुम्मन देशमुख का समर्थन कर रहा है, जबकि दूसरा धड़ा ताम्रध्वज साहू का। दोनों दलों को इस चुनौती से जूझने के लिए अपने समीकरण में बदलाव करने पड़ रहे हैं। 

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