रायपुर जिले की सात सीटों की ग्राउंड रिपोर्ट
रायपुर. चुनावी शोर तो चारों ओर है। जहां वोट पड़ गए वहां हार-जीत के कयास। जहां वोटिंग होनी है वहां चर्चा ये कि माहौल किसके पक्ष में है? इस बीच एक चर्चा स्वाभाविक रूप से जुड़ जाती है- 'और... क्या चल रहा है राजधानी की चारों सीटों में?' इसी की टोह लेने हम निकले इन चारों सीटों से होकर राजधानी से लगी तीन और सीटों तक। पता चला इन सीटों के चुनावी मुकाबले में मुद्दे पूरी तरह से गायब हैं। प्रत्याशी का पिछला परफॉर्मेंस तो कहीं उसका व्यक्तित्व ही वोटरों का पैमाना है। चाहे वह विपक्ष का हो या फिर सत्ता पक्ष, चर्चा है सिर्फ चेहरे की। रायपुर में प्रदेशभर की चुनावी जंग के लिए सभी दलों के क्षत्रप आ रहे हैं, जा रहे हैं। ऐसे में चुनावी सरगर्मी भी दूसरी सीटों से तेज है। लेकिन आसपास की तीन सीटों पर केवल प्रचार ही माहौल बना रहा है। हां, बड़े नेताओं के चुनाव लड़ने के कारण प्रचार के तरीकों और भीड़ पर बातें जरूर जुबां पर हैं। किसी के चुनाव लड़ने के तरीके पर तो किसी की संभावित लीड पर।
भाजपा और कांग्रेस के लिए यह सीट हमेशा से कांटे की टक्कर वाली रही है। पर इस बार जोगी कांग्रेस की मौजूदगी ने यहां रोचक त्रिकोणीय संघर्ष पैदा कर दिया है। कांग्रेस के सत्यनारायण शर्मा को सीट बचाने के लिए अपने ही पुराने सिपहसलार रहे जोगी कांग्रेस के ओमप्रकाश देवांगन की चालों का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि खुद का प्रभावी कद साथ है, लेकिन भाजपा के नंदे साहू को त्रिकोणीय संघर्ष में फायदे की रोशनी नजर आ रही है। लिहाजा उनकी सारी कवायद साहू समाज के वोटों के ध्रुवीकरण और भाजपा के शहरी वोटों को जुटाने में है।
मुद्दे : आसपास के गांवों के वोटरों को रायपुर जैसी सुविधाएं चाहिए। कुछेक जगहों पर सड़कें-नालियों की मांग ही प्रमुख समस्या के तौर पर सामने आई है।
पिछली बार जैसा ही माहौल इस बार भी नजर आ रहा है। पुराने प्रतिद्वंद्वी श्रीचंद सुंदरानी और कुलदीप जुनेजा आमने-सामने हैं। विधायक श्रीचंद को अपने काम की बदौलत अपनी सीट बचा लेने का भरोसा है। वहीं कुलदीप अपनी सक्रियता को सबसे बड़ा हथियार बनाकर चुनाव मैदान में हैं। पर इन दाेनों के बीच सिंधी समाज के वोटों का बड़ा धड़ा लेकर अमर गिदवानी जोगी कांग्रेस से मैदान में मौजूदगी दर्ज कर रहे हैं। सिंधी समाज के वोट बंटे तो भाजपा के लिए परेशानी हो सकती है। इस कारण श्रीचंद को इस पर अधिक फोकस करना पड़ रहा है। कुलदीप के लिए यही बड़ा आधार होता दिख रहा है।
मुद्दे : रायपुर का पॉश इलाका है, इसलिए ऐसी कोई बड़ी समस्या मुद्दे के तौर पर नहीं है। लेकिन बुनियादी सुविधाओं के मामलों में लोगों के सुर सुनाई पड़े हैं।
विकास कार्य जैसा कोई मुद्दा जाहिर तौर पर सामने नहीं है। पर यहां पर चेहरों पर लड़ाई चली गई है। इसीलिए मंत्री राजेश मूणत के खिलाफ कांग्रेस ने अपने पुराने प्रत्याशी विकास उपाध्याय को ही उतारा है। विकास शहर कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर सक्रिय रहे। मूणत विकास कार्यों की बदौलत चौथी पारी की तैयारी में हैं। वे चुनाव प्रचार के दौरान कामों के अलावा और किसी पर बात भी नहीं कर रहे। कांग्रेस सरकार विरोधी माहौल को भुनाने की काेशिश कर रही है। विकास की चुनौती यहां पर किस स्तर तक जाएगी, इसी पर सबकी निगाहें हैं। पिछली बार यहां जीत-हार का अंतर 6 हजार के आसपास था।
मुद्दे : विकास कार्यों की लंबी फेहरिस्त है। इस कारण यहां काम मुद्दा नहीं है। नेताओं में व्यक्तित्व की लड़ाई महत्वपूर्ण है। दोनों के व्यवहार पर बात अधिक हो रही है।
इस समय रायपुर दक्षिण सीट पर सबकी निगाहें लगी हुई हैं। हाईप्रोफाइल सीट होने के कारण यहां जीत-हार के अंतर पर अधिक बात हाे रही है। प्रदेश के कद्दावर मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के मुकाबले इस बार कांग्रेस ने कन्हैया अग्रवाल को उतारा है। यानी हर चुनाव में कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी बदला है। सुंदरनगर टोल नाका और स्थानीय मुद्दों पर सरकार के खिलाफ आंदोलन करने के दौरान ही कन्हैया चर्चा में आए थे। लिहाजा बृजमोहन की इस परंपरागत सीट पर रोज हाे रहे हाईप्रोफाइल चुनाव प्रचार पर बातें हो रही हैं। कांग्रेस बदलाव के नारे के साथ चुनाव प्रचार को आगे बढ़ा रही है।
मुद्दे : आम शहरी बुनियादी सुविधाएं जैसे नाली, पानी-बिजली जैसी कोई बड़ी समस्या यहां नहीं है। केवल प्रत्याशी के चेहरे पर चुनाव हो रहा है।
पिछली बार की तरह ही इस बार भी विधायक देवजी भाई पटेल का कांग्रेस की अनिता शर्मा से मुकाबला है। संसाधनों की कमी शायद कांग्रेस उम्मीदवार अनिता शर्मा के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। वहीं देवजी लगातार चौथी पारी के लिए जोर लगा रहे हैं। वैसे यहां कांग्रेस की ओर से बदलाव के नारे को भी प्रमुखता से उछाला जा रहा है। लिहाजा यहां भाजपा सरकार के कार्यों पर जोर अधिक दिया जा रहा है। देवजी अपने द्वारा कराए गए कामों की फेहरिस्त लेकर चल रहे हैं। अनिता शर्मा ने पिछली बार देवजी को कड़ी टक्कर दी थी। वे मात्र 2390 वोटों से चुनाव हार गईं। इस बार भी मुकाबला रोचक होगा।
मुद्दे : औद्योगिक क्षेत्र का प्रदूषण ही इस इलाके की सबसे बड़ी समस्या है। हालांकि यह पूरी तरह चुनावी मुद्दा नहीं बन पाया। गांवों में सड़कों को लेकर नाराजगी रही है।
धनेंद्र साहू और चंद्रशेखर साहू की लड़ाई के नाम से ही यह सीट चर्चित है। दोनों पुराने साथी हैं, हालांकि राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता पिछले छह बार के चुनाव से दोनों के बीच रही है। इस बार भी कांग्रेस विधायक धनेंद्र साहू को अपने पुराने प्रतिद्वंद्वी चंद्रशेखर साहू की चुनौती का ही सामना करना पड़ रहा है। नजदीकी लड़ाई है। मुद्दे गौण हैं फिर भी धनेंद्र किसानों के लिए लड़ी गई अपनी लड़ाई पर भरोसा कर रहे हैं। चंद्रशेखर भाजपा सरकार के काम लेकर विधायक पर हमला बोल रहे हैं। लिहाजा यहां नजदीकी परिणाम ही आने की पूरी संभावना है।
मुद्दे : किसान बहुल इलाका है। कांग्रेस सरकार पर पूरा बोनस नहीं देने का आरोप लगा रही है और भाजपा बोनस देने का फायदा लेने की कोशिश में है।
पिछला चुनाव लड़े दोनों चेहरे इस बार गायब हैं। दो पूर्व विधायक मैदान में हैं। कांग्रेस के शिव डहरिया और भाजपा के संजय ढीढी सीधे-सीधे एससी बहुल इलाके में जातीय समीकरण के भराेसे चुनाव लड़ रहे हैं। भाजपा ने अपने विधायक का टिकट काटकर पुराने विधायक को मौका दिया है। इससे लड़ाई रोमांचक हो गई है। वहीं कांग्रेस के शिव डहरिया के लिए भी यह नया अनुभव देने वाला चुनाव हो गया है। एससी बहुल इलाके में दीगर वोटर भी हैं। सरकार के कामकाज को लेकर भाजपा विकास के नारे के साथ है तो कांग्रेस बदलाव के नारे के साथ।
मुद्दे : ग्रामीण इलाके में सड़कों के साथ बुनियादी सुविधाओं की मांग बराबर बनी हुई है। राजधानी से लगा नगर है, इसलिए काम तो हुए हैं।
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