Tuesday, 3rd June 2025

मध्यप्रदेश / विंध्य में 'सरकार' का बोलबाला, सवर्णों की नाराजगी दलितों की खुशहाली

Fri, Nov 16, 2018 7:04 PM

 

शहडोल. ब्योहारी में किराना की छोटी दुकान चलाने वाले मनोज गुप्ता एससी-एसटी एक्ट के खिलाफ फट पड़ते हैं। दुकान पर आने वाले लोग भी उनकी हां में हां मिलाकर कहते हैं कि नोटबंदी और जीएसटी ने काम-धंधा चौपट कर दिया। सड़कों की हालत खराब है। बिना लिए-दिए कोई काम नहीं होता। वे भविष्यवाणी करते हैं कि भाजपा सत्ता में वापस नहीं आएगी।

 

बाजारों में, सड़कों पर और मिडिल क्लास बस्तियों में इसी तरह की आवाजें सुनने मिलती हैं, पर जैसे ही हम कच्ची बस्तियों और अतिक्रमण कर बनाए टपरों की तरफ रुख करते हैं, सीन बदल जाता है। गरीब, खासकर दलित गरीब, भाजपा से जुड़ाव महसूस करता है।लोगों की जिंदगियों में नजदीक से झांकने की कोशिश के दौरान एक राजनीतिक ट्रेंड सामने उभर कर आता है। एससी-एसटी एक्ट के साथ ही गरीबों के लिए बनी कल्याणकारी योजनाओं ने भाजपा के लिए अनुकूल परिस्थितियां पैदा की हैं। एससी-एसटी एक्ट ने भले ही भाजपा के ही कुछ सवर्ण कार्यकर्ताओं को नाराज किया हो पर दलित समुदाय में उसने प्रशंसा का अंडरकरेंट भी पैदा किया है। गरीब-गुरबों के लिए बनी योजनाओं ने भाजपा के लिए नया वोट बैंक तैयार किया है।


गुढ़ कस्बे के मुहाने पर ही बसोड़ों की झोपड़ियां हैं। कुछ पक्के मकान भी आधे-अधूरे बने खड़े हैं। यह मलिन बस्ती कीचड़ के तालाब के किनारे है, जहां शहर के नालों का गन्दा पानी आकर इकठ्ठा होता है। “ई सरकार हमारे लिए बहुत कुछ किये, इस बार तो कमले जितहिं,” बस्ती में रहने वाले राकेश बंसल कहते हैं। वे बस भाड़े के लिए जेब में 20 रुपए डालकर रोज मजदूरी के लिए 24 किलोमीटर दूर रीवा जाते हैं और वापस 150 रुपए लेकर लौटते हैं। पर वे नगर पंचायत के स्थानीय भाजपा नेता से इसलिए नाराज हैं कि उसने आवास योजना के पैसे “दबा लिए”।


पान-गुटखे की एक दुकान पर उनके आस-पास बस्ती के लोगों का हुजूम इकठ्ठा हो जाता है। वे मुझे बताते हैं कि इस सरकार ने उनके लिए क्या किया है। “बिजली का पुराना बिल माफ, अब 200 रुपए दो और चाहे जितनी जलाओ”, एक अधेड़ व्यक्ति कहता है। वे आवास योजना के तहत मिल रही मदद का जिक्र करते हैं और सामने बन रहे मकान दिखाते हैं। भीड़ में कोई मुफ्त गैस सिलेंडर का भी जिक्र करता है। ज्यादातर लोग कहते हैं कि इस बार वे भाजपा को वोट देने वाले हैं। और बसपा? “पहले देत रहे। उ कोई काम नहीं किये।” रीवा में ही रहने वाले जयराम शुक्ल भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि बसपा के वोट बैंक का एक हिस्सा खिसक रहा है।

 

सीधी के बारे में कहा जाता है कि वहां की कोई सड़क सीधी नहीं, पर शहर की तोतरकलां स्वीपर बस्ती की सीमेंट से बनी सारी सड़कें न केवल सीधी हैं, बल्कि शीशे सी चमक भी रही हैं। कूड़े का निशान नहीं। लोग घर के सामने की सड़क खुद बुहार रहे हैं। 65 साल के राममनोहर स्थानीय विधायक केदारनाथ शुक्ल से नाराज हैं। “बड़े लोग हैं, टाइम नहीं।” पर वे कहते हैं कि भाजपा का जोर है। स्वीपर यूनियन के अध्यक्ष राजू भारती भी सरकारी जमीन पर कब्ज़ा करके बनाई गई इसी दलित बस्ती में ही रहते हैं। वे कहते हैं कि भाजपा ने गरीबों की जितनी मदद की और किसी ने नहीं किया।

 

शहडोल के एक होटल के आदिवासी वेटर को यह पता नहीं कि उसके विधानसभा क्षेत्र का नाम क्या है या विधायक कौन हैं, पर उसे अच्छी तरह मालूम है कि 20 किलोमीटर दूर उसके आदिवासी गांव में कमल ही जीतेगा। लाख टके का सवाल है कि दलित-आदिवासी और गरीब तबकों में इस जनाधार को क्या भाजपा भुना पायेगी? या फिर विंध्य में उसकी सवर्ण लीडरशिप ही कहीं उसकी राह का रोड़ा तो नहीं बन जाएगी, जैसा कि हमने गुढ़ और सीधी के सियासी सफर में देखा।

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