रायपुर (जॉन राजेश पॉल). चुनाव में उम्मीदवार एक-एक वोट के लिए जद्दोजहद करते हैं। बूथ लेवल से लेकर माइक्रो लेवल तक मैनेजमेंट करते हैं। कई बार नतीजे चौंकाते हैं। हार-जीत के कई किस्से दिलचस्प हो जाते हैं। 2013 के चुनाव में भी ऐसे कई किस्से देखने को मिले थे, जब 27-30 हजार वोट पाकर प्रत्याशी जीते थे, जबकि 90 हजार से ज्यादा वोट पाने वाले भी हारे थे।
तीन ऐसी सीटें थीं, जिसमें पहले और दूसरे उम्मीदवारों को मिले वोट को जोड़ दें तो 60 हजार से कम हैं, जबकि 70 हजार से ज्यादा वोट पाकर 7 प्रत्याशी हार गए थे। राजनीति में चर्चित शब्द है फर्स्ट पास्ट द पोस्ट यानी जिसे अन्य प्रत्याशियों से अधिक मत मिला, उसे निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है।
भले ही एक वोट अधिक हो या दस हजार। 2013 में हुए चुनाव में तीन विधानसभा क्षेत्र में जीतने वाले प्रत्याशियों को तीस हजार के आसपास वोट मिले। इतने वोट पाकर ये प्रत्याशी जीत गए। जबकि 70 हजार से 91 हजार वोट पाने वाले कई प्रत्याशी हार गए। ऐसे नेताओं में पहला नाम कवर्धा के कांग्रेस प्रत्याशी मोहम्मद अकबर का है।
अकबर को कुल 91087 वोट मिले थे। अकबर से 2558 वोट ज्यादा पाकर भाजपा के अशोक साहू जीत गए थे। पंडरिया, साजा, कसडोल, बसना, बिल्हा और रायगढ़ भी ऐसी सीट हैं, जहां 70 हजार से ज्यादा वोट पाकर उम्मीदवार हार गए थे।
यहां कम मत पाकर जीते
इन सीटों पर थोक में वोट पाकर भी हार गए प्रत्याशी
चुनाव आयोग भी सुधार के पक्ष में
राजनीति के जानकार कहते हैं कि जीत तो जीत होती है, भले ही एक वोट से हो। लगातार सुधार के काम में लगा चुनाव अायोग भी चाहता है कि ऐसी विसंगतियां दूर हों। इसके लिए जरूरी है कि वोट परसेंट बढ़े और बेवजह चुनाव लड़ने वालों पर लगाम लगाई जाए। हालांकि यह आसान नहीं है। विधानसभा चुनाव की पद्धति राज्यसभा चुनाव की तरह का भी सुझाव आया। इस पर सहमति नहीं बनी। सुधार के तमाम सुझाव उलझनों में फंस गए।
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