जयपुर। हर साल दिवाली पर राजस्थान के बीकानेर में उर्दू में लिखी रामायण का वाचन होता है। यह रामायण साल 1935 में लखनऊ के मौलवी बादशाह हुसैन राणा लखनवी ने बीकानेर में लिखी थी। उस जमाने में इसे गोल्ड मेडल से नवाजा गया था। आज भी इसे उर्दू में छंद में लिखी सबसे अच्छी रामायण मानी जाता है। खास बात है कि यह सिर्फ नौ पृृष्ठों की है। इसमें छह-छह पंक्तियों के 27 छंदों में पूरी रामायण समा गई है।
महफिल-ए-अदब संस्था से जुड़े असद अली असद बताते हैं कि 1935-36 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय ने एक स्पर्धा हुई थी। कहा गया था कि अपनी मातृृभाषा में कविता की शक्ल में रामायण लिखें। मौलवी राणा यूं तो लखनऊ के थे, लेकिन उस समय बीकानेर रियासत में महाराजा गंगा सिंह के यहां उर्दू-फारसी के फरमान अनुवाद किया करते थे।
पर्यटन लेखक संघ के सचिव डॉ. जिया उल हसन कादरी बताते हैं उस जमाने में महाराजा गंगा सिंह ने इसे आठवीं के कोर्स में शामिल किया था। बाद में राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने भी इसे कोर्स में रखा। हालांकि अब नहीं है।
मूल उर्दू रामायण तो उपलब्ध नहीं है, लेकिन मौलवी राणा पर किसी ने किताब लिखी है और उसमें रामायण को छापा गया है। इसी से हम हर साल दिवाली पर इसका वाचन करते हैं। कोई यदि सिर्फ आधा घंटे में रामायण पढ़ना चाहता है तो इसे पढ़ सकता है।
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