नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में विवाद जमीन के मालिकाना हक के मामले में सुनवाई जनवरी तक टाल दी है। नई बेंच और केस की नियमित सुनवाई पर अब तभी फैसला होगा। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस केएम जोसेफ की बेंच सोमवार को 2010 में आए इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं पर विचार कर रही थी। पहले इस मामले की सुनवाई पूर्व चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर की बेंच कर रही थी।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ तीन पक्षकारों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की हैं। 27 सितंबर को तत्कालीन चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर की बेंच ने विवादित भूमि के मामले की सुनवाई नई बेंच में करने का आदेश दिया था।
1994 के फारुखी मामले का भी जिक्र आया
सुनवाई के दौरान इस्माइल फारुखी के मामले में 1994 में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी जिक्र आया था। फारुखी मामले में दिए फैसले में कहा गया था कि नमाज के लिए मस्जिद इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है। इस फैसले को भी पुनर्विचार के लिए पांच जजों की संवैधानिक बेंच के पास भेजने की अपील की गई थी। जिसे जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच ने नकार दिया था। जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच ने कहा था- विवादित भूमि के मामले की सुनवाई 29 अक्टूबर से नई बेंच करेगी। इसके अलावा इस मामले में सुनवाई सबूतों के आधार पर होगी, पुराने फैसले की इस मामले में कोई प्रासंगिकता नहीं है।
मस्जिद और इस्लाम के बारे में 1994 का संवैधानिक बेंच का फैसला भूमि अधिग्रहण के मामले में था। अयोध्या जमीन विवाद पर फैसला तथ्यों के आधार पर होगा। पिछले फैसले प्रासंगिक नहीं होंगे।
जस्टिस अशोक भूषण (27 सितंबर 2018)
जस्टिस नजीर ने कहा था- धार्मिक मान्यताओं को ध्यान में रखकर हो फैसला
जस्टिस मिश्रा की बेंच ने 2:1 के बहुमत से ये फैसला दिया था। जस्टिस एस अब्दुल नजीर ने दोनों जजों से अलग दिए अपने फैसले में कहा था- संवैधानिक बेंच फैसला करे कि धर्म के लिए अनिवार्य परंपरा क्या है और इसके बाद ही अयोध्या जमीन विवाद मामले की सुनवाई होनी चाहिए। क्या नमाज के लिए मस्जिद इस्लाम का अटूट हिस्सा है? इसका फैसला धार्मिक मान्यताओं को ध्यान में रखते हुए करना चाहिए और इसके लिए विस्तृत विवेचना की आवश्यकता है।
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