कोलंबो. श्रीलंका में रानिल विक्रमसिंघे को प्रधानमंत्री पद से हटाने के चलते विवाद बढ़ गया है। रविवार को भीड़ ने पेट्रोलियम मंत्री और पूर्व क्रिकेटर अर्जुन रणतुंगा को बंधक बनाने की कोशिश की। मंत्री को बचाने के लिए उनके गार्ड्स को फायरिंग करनी पड़ी, जिसके चलते राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना के 2 समर्थक घायल हो गए। इससे पहले श्रीलंकाई संसद के स्पीकर कारू जयसूर्या ने राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना को पत्र लिखा कि कानूनी तौर पर विक्रमसिंघे ही देश के प्रधानमंत्री हैं और सदन को भंग करने के फैसले के गंभीर नतीजे हो सकते हैं।
जयसूर्या ने कहा कि विक्रमसिंघे को लोकतंत्र और सुशासन कायम करने के लिए जनादेश हासिल मिला है। ऐसे में संसद स्थगित करने का फैसला परामर्श से लिया जाना था। जयसूर्या ने विक्रमसिंघे की सुरक्षा वापस लेने के सिरिसेना के फैसले पर भी सवाल उठाए।
दूसरी तरफ भारत ने उम्मीद जताई कि श्रीलंका में लोकतांत्रिक और संवैधानिक मूल्यों का सम्मान किया जाएगा। विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा कि इन परिस्थितियों में भी भारत श्रीलंका के लोगों के साथ खड़ा है और अपनी तरफ से मदद का हाथ बढ़ाता रहेगा।
इसी बीच विक्रमसिंघे ने खुद को प्रधानमंत्री पद से हटाए जाने को असंवैधानिक बताया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री कार्यालय अभी उनके पास है और समय आने पर वे बहुमत साबित करने के लिए तैयार हैं। विक्रमसिंघे ने स्पीकर से सोमवार को संसद का आपात सत्र बुलाने की मांग की, ताकि बहुमत साबित कर सकें।
श्रीलंका में शुक्रवार को राष्ट्रपति सिरिसेना ने एक नाटकीय घटनाक्रम के बाद गुपचुप तरीके से राजपक्षे को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई थी। इसके वीडियो और फोटो बाद में जारी किए गए। पूर्व राष्ट्रपति राजपक्षे की पार्टी यूनाइटेड पीपुल्स फ्रीडम अलायंस (यूपीएफए) ने विक्रमसिंघे सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। राष्ट्रपति के इस फैसले के विरोध में नेताओं और कार्यकर्ताओं ने शनिवार को प्रधानमंत्री के आवास टेंपल ट्रीज के सामने प्रदर्शन किया।
न्यूयॉर्क के ह्यूमन राइट्स वॉच ने चेतावनी दी है कि राष्ट्रपति सिरिसेना के पूर्व राष्ट्रपति को प्रधानमंत्री बनाने से गलत परंपरा की शुरुआत हो सकती है। बताया जा रहा है कि सिरिसेना और विक्रमसिंघे के बीच कई मुद्दों खासकर आर्थिक और सुरक्षा मसलों पर मतभेद थे।
श्रीलंका में नियम के मुताबिक- राष्ट्रपति उसी स्थिति में नए प्रधानमंत्री नियुक्ति कर सकता है जब मौजूदा प्रधानमंत्री की मौत हो जाए या वह लिखित में इस्तीफा दे दे या फिर संसद में प्रधानमंत्री के खिलाफ अविश्वास मत पास हो जाए।
ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा कि मौजूदा सरकार युद्ध अपराध के पीड़ितों को इंसाफ दिलाने में नाकाम रही। राजपक्षे ने फिर से सत्ता में आकर उन लोगों के लिए दरवाजे खोल दिए हैं जो कोई भी गलत फैसले ले सकते हैं। लिट्टे के खिलाफ युद्ध में राजपक्षे पर मानवाधिकार उल्लंघन और मीडिया को दबाने के आरोप लगे थे।
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