सूचना क्रांति का दौर
डिजिटल मार्केटिंग कंपनी कंसोल ग्रुप के को-फाउंडर पुष्पेंद्र सिंह के मुताबिक सूचना क्रांति योजना, सस्ते मोबाइल फोन, सस्ता डाटा होने के कारण अधिकांश हाथों में मोबाइल फोन है। यह ऐसा माध्यम है, जिससे सीधे सूचनाओं को पहुंचाया जा सकता है। किस वर्ग को, किस समय और कौन सा संदेश भेजना है, यह भी आसान है, इसलिए ट्रेडिशनल के बजाय डिजिटल कैंपेनिंग की मांग बढ़ रही है।
खरीदी घटी, काराेबारी परेशान
चुनाव प्रचार सामग्रियों के प्रमुख विक्रेता संतोष जैन का कहना है कि पिछले चुनावों के मुकाबले इस बार प्रचार सामग्रियों की खरीद-बिक्री काफी कम है। आयोग की सख्ती के कारण प्रत्याशी बड़े पैमाने पर प्रचार सामग्री नहीं खरीद रहे। भाजपा ने 78 सीटों पर नाम घोषित किए हैं। कांग्रेस ने 18 ही उम्मीदवार तय किए हैं। उम्मीद है कि दूसरे चरण में चुनाव प्रचार सामग्रियों की मांग बढ़ेगी।
अब 1.66 करोड़ मोबाइल कनेक्शन
राज्य निर्माण के समय मोबाइल कनेक्शन की संख्या नहीं के बराबर थी। यह बढ़कर अब 1.66 करोड़ पहुंच चुकी है। आईटी व टेलीकॉल इंडस्ट्रीज से जुड़े एक्सपर्ट्स के मुताबिक 2013 में टेली डेन्सिटी 54 फीसदी थी। यानी 100 लोगों में 54 लोगों के पास मोबाइल कनेक्शन था। वर्तमान में यह 68 फीसदी हो गया है। इसी तरह 2013 में प्रति व्यक्ति प्रति महीने 400 एमबी डाटा इस्तेमाल होता था। यह बढ़कर अब 9000 एमबी हो गया है। यानी 20 गुना ज्यादा।
आयोग की सख्ती का भी बाजार पर असर
झंडे, बैनर-पोस्टर व अन्य पारंपरिक प्रचार सामग्रियों के विक्रेताओं का कहना है कि चुनाव आयोग की सख्ती लगातार बढ़ती जा रही है। पूरे दस्तावेज बिल-रसीद पास हों, तब भी जांच की सख्ती कम नहीं होती। इस वजह से प्रत्याशी बड़े पैमाने पर प्रचार सामग्री नहीं खरीद रहे। निर्वाचन खर्च बचाने के लिए अपने नाम के बजाय पार्टी के रंग से द्वार तोरण आदि बनवा रहे हैं, जिससे प्रचार भी हो जाए और प्रत्याशी के खाते में प्रचार का व्यय न जुड़ सके।
जोगी कांग्रेस : राजधानी में बनाया वॉर रूम
चुनिंदा प्रत्याशियों ने ही निजी पीआर एजेंसी की मदद ली है। स्थानीय एक्सपर्ट्स की मदद से प्रमोशन। पार्टी के कार्यकर्ताओं को भी किया गया हैं ट्रेंड।
कांग्रेस : राजधानी में गोपनीय जगह में वॉर रूम
दिल्ली से आई टीम सोशल मीडिया और डिजिटल कैंपेन को मैनेज कर रही। 14500 कार्यकर्ताओं को किया गया हैं ट्रेंड। प्रत्याशियों ने भी निजी एजेंसियों को नियुक्त किया है।
रायपुर विधानसभा चुनाव के पहले चरण की नामांकन प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। सभी दलों के प्रत्याशी चुनाव मैदान में कूद पड़े हैं, लेकिन राजधानी के प्रचार सामग्री बेचने वाले बस स्टैंड स्थित दो दुकानों में सन्नाटा पसरा हुआ है। राजधानी में चुनाव प्रचार सामग्री बेचने वाले ऐसे चार बड़े विक्रेता अब रह गए हैं, लेकिन उनके पास भी उतने ग्राहक नहीं रहे। इसके विपरीत राजधानी में दो दर्जन से ज्यादा ऐसी एजेंसियां खुल गई हैं, जो प्रत्याशियों और दावेदारों के लिए डिजिटल कैंपेनिंग कर रहे हैं। वाट्सएप, फेसबुक, टि्वटर के जरिए त्योहार की शुभकामनाएं दे रहे हैं। वॉइस कॉल के जरिए पार्टी के निशान पर मतदान करने की अपील कर रहे हैं तो वीडियो के जरिए भी चुनाव प्रचार कर रहे हैं। 2013 में हुए विधानसभा चुनाव के मुकाबले 2018 में तीस से चालीस फीसदी पारंपरिक प्रचार सामग्रियां कम हो गई हैं। इसे सोशल मीडिया या डिजिटल कैंपेनिंग के जरिए पूरा किया जा रहा है।
पार्टियों ने भी बनाया माध्यम
सिर्फ प्रत्याशी ही नहीं, बल्कि राजनीतिक दलों ने भी डिजिटल व सोशल मीडिया कैंपेनिंग को हथियार बना लिया है। आईटी सेल का अलग वॉर रूम तैयार किया गया है। बूथ लेवल तक टीम खड़ी की गई है, वहीं झंडे-बैनर लेकर प्रचार करने के बजाय वाट्सएप ग्रुप से पार्टी और प्रत्याशी के संदेश को शेयर किया जा रहा है। प्रचार रथ तैयार किया गया है, जिसमें एलईडी स्क्रीन पर वीडियो से संदेशों को दिखाया-समझाया जा रहा है। इसके लिए बाकायदा स्टूडियो तैयार किए गए हैं।
जानिए, सोशल मीडिया में कैंपेन के लिए दलों ने क्या किया
भाजपा : एकात्म परिसर में हाईटेक स्टूडियो
सोशल मीडिया, प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक के लिए अलग-अलग कंटेट के एक्सपर्ट्स। स्थानीय निजी एजेंसियों के जरिए प्रमोशन। प्रत्याशी स्तर पर अलग-अलग एजेंसियों से प्रमोशन।
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