नई दिल्ली. आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजने के फैसले के खिलाफ कांग्रेस का शुक्रवार को देशभर में विरोध जताने का ऐलान किया है। दिल्ली में भी सीबीआई मुख्यालय के सामने पार्टी के कार्यकर्ताओं का जमावड़ा लगा है। बताया जा रहा है कि इसमें राहुल गांधी भी शामिल हो सकते हैं। उधर, कांग्रेस के इस प्रदर्शन का तृणमूल कांग्रेस ने भी समर्थन किया है। उधर, सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई चीफ आलोक कुमार वर्मा की याचिका पर मामले की जांच रिटायर्ड जज एके पटनायक की निगरानी में कराने का आदेश दिया है। वर्मा ने खुद को छुट्टी पर भेजे जाने और उनसे सारे अधिकार वापस लेने के केंद्र सरकार के फैसले को चुनौती दी थी।
आलोक वर्मा की पैरवी कर रहे फाली नरीमन ने सुप्रीम कोर्ट से कहा, ‘‘सीवीसी और केंद्र सरकार की ओर से पारित आदेश किसी कानून अधिकार के तहत नहीं है।’’इस पर तीन जजों की बेंच ने कहा- हम इसे देखेंगे। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा- हमें सिर्फ यह देखना है कि किस तरह का अंतरिम आदेश पारित किया जाना है। चीफ जस्टिस ने अटॉर्नी जनरल से कहा- जांच सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा या पूर्व जजों से कराई जाएगी। एम नागेश्वर राव कोई नीतिगत फैसला नहीं करेंगे।
सुनवाई के दौरान सीबीअाई के स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना भी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं। इससे पहले गुरुवार को सीबीआई ने इस मामले में सफाई दी। कहा- आलोक वर्मा अभी भी सीबीआई डायरेक्टर और राकेश अस्थाना स्पेशल डायरेक्टर हैं। इन अफसरों को हटाया नहीं गया है। इन्हें सिर्फ जांच से अलग करके छुट्टी पर भेजा गया है।
सुप्रीम कोर्ट में दी गई याचिका में आलोक वर्मा की दलीलें
सीबीआई चीफ आलोक वर्मा की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को सुनवाई होनी है। याचिका में वर्मा ने दलील दी कि उन्हें हटाना डीपीएसई एक्ट की धारा 4बी का उल्लंघन है। डायरेक्टर का कार्यकाल दो साल तय है। प्रधानमंत्री, नेता विपक्ष और सीजेआई की कमेटी ही डायरेक्टर को नियुक्त कर सकती है। वही हटा सकती है। इसलिए सरकार ने कानून से बाहर जाकर निर्णय लिया है। कोर्ट ने बार-बार कहा है कि सीबीआई को सरकार से अलग करना चाहिए। डीओपीटी का कंट्रोल एजेंसी के काम में बाधा है।
सरकारी दखल कहीं लिखित में नहीं मिलेगा। लेकिन, ये होता है। इसका सामना करने के लिए साहस की जरूरत होती है।
आलोक वर्मा, सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में
सरकार ने कहा- एजेंसी की छवि के लिए ऐसा करना जरूरी
सीबीआई विवाद में कार्रवाई को लेकर सरकार ने बुधवार को जवाब दिया। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा- केंद्र ने कहा कि सीबीआई की ऐतिहासिक छवि रही है और उसकी ईमानदारी को बनाए रखने के लिए ऐसा करना जरूरी हो गया था। सीवीसी की अनुशंसा पर एक एसआईटी पूरे मामले की जांच करेगी। केंद्र ने यह भी साफ किया अगर अधिकारी निर्दोष होंगे तो उनकी वापसी हो जाएगी। सरकार ने विपक्ष के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि सीवीसी की सिफारिश के बाद केंद्र ने अधिकारियों को हटाने का फैसला किया है।
माेइन कुरैशी के मामले की जांच से शुरू हुआ रिश्वतखोरी विवाद
सीबीआई में अस्थाना मीट कारोबारी मोइन कुरैशी से जुड़े मामले की जांच कर रहे थे। इस जांच के दौरान हैदराबाद का सतीश बाबू सना भी घेरे में आया। एजेंसी 50 लाख रुपए के ट्रांजैक्शन के मामले में उसके खिलाफ जांच कर रही थी। सना ने सीबीआई चीफ को भेजी शिकायत में कहा कि अस्थाना ने इस मामले में उसे क्लीन चिट देने के लिए 5 करोड़ रुपए मांगे थे। हालांकि, 24 अगस्त को अस्थाना ने सीवीसी को पत्र लिखकर डायरेक्टर आलोक वर्मा पर सना से दो करोड़ रुपए लेने का आरोप लगाया था।
सीबीआई कैसे पहुंचा राफेल का मामला?
अखबार इंडियन एक्सप्रेस की खबर में दावा किया गया है कि सीबीआई चीफ अालोक वर्मा जिन मामलों को देख रहे थे, उनमें सबसे संवेदनशील केस राफेल डील से जुड़ा था। दरअसल, 4 अक्टूबर को ही वर्मा को पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी और वकील प्रशांत भूषण की तरफ से 132 पेज की एक शिकायत मिली थी। इसमें कहा गया था कि फ्रांस के साथ 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने की सरकार की डील में गड़बड़ी हुई है। आरोप था कि हर एक प्लेन पर अनिल अंबानी की कंपनी को 35% कमीशन मिलने वाला है। दावा है कि आलोक वर्मा को जब हटाया गया, तब वे इस शिकायत के सत्यापन की प्रक्रिया देख रहे थे।
सीबीआई में दो बड़े अफसरों के बीच दो साल से टकराव जारी
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