मल्टीमीडिया डेस्क। एक राजा था। उसके चार पुत्र थे। राजा के चारों पुत्रों को बंदरों के साथ खेलने का काफी शौक था। चारों राजकुमार बंदरों के हुजूम के साथ राजमहल में खूब खेलते थे। राजमहल की पशुशाला में भेड़ों का एक बाड़ा था। उन भेड़ों में से एक भेड़ ने राजमहल की रसोई का रास्ता देख लिया था।
भेड़ मौका देखते ही रसोई में घुस जाती और रसोई में रखे पकवानों को चट कर जाती थी। जैसे ही रसोइयों को पता चलता था वह उसको मार-पीट कर भगा देते थे, लेकिन भेड़ को रसोई में रखे भोजन की लत लग गई थी। वह रोजाना रसोई में घुसकर वहां पर रखे पकवानों को खा जाती थी।
भेड़ के रसोई में घुसकर पकवान खाने का पता बंदरों के बूढ़े सरदार को चला तो उसको किसी अनहोनी की आशंका हो गई। उसने वानरों से कहा कि' राजमहल को तुरंत छोड़कर जंगल का रुख करें', लेकिन वृद्ध बंदर की बात किसी ने नहीं मानी। वह मन मसोसकर बंदरों के झुंड से वापस चला गया। उसने राजमहल का त्याग किया और जंगल में चला गया।
कुछ दिनों बाद जब भेड़ रसोई में घुसकर पकवान खा रही थी तभी रसोइये ने लंगर की जलती लकड़ी से उसको पीटना शुरू कर दिया। जिससे भेड़ के शरीर पर फैली ऊन में आग लग गई। भेड़ आग से घबराकर नजदीक के घुड़साल में घुस गई। घुड़साल में चारा और घास-फूस रखे हुए थे। भेड़ के शरीर की आग घुड़साल में फैल गई। आग से वहां पर बंधे घोड़े झुलस गए।
राजा को जब इस बात का पता चला को उसने घोड़ों के उपचार के लिए तुरंत राजवैध को बुलाया। राजवैध ने झुलसे घोड़ों को देखकर कहा कि 'बंदरों की चर्बी से बनी औषधी ही इसका उपचार है।' इतना सुनते ही राजमहल के बंदरों को पकड़ लिया गया और उनको मारकर उनकी चर्बी से घोड़ों के लिए औषधि बना दी गई और घोड़ों का इलाज शुरू किया गया।
इस बात का पता जब जंगल चले गए वृद्ध बंदर को चला तो उसने अफसोस जताते हुए कहा की, जो अच्छी सलाह नहीं मानते हैं वह अपने दुश्मन स्वयं होते हैं।
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