राकेश पाण्डेय / मनोज व्यास। रायपुर. बस्तर और राजनांदगांव की जिन 18 सीटों पर पहले चरण का मतदान होना है, वहां दोनों दलों ने पत्ते खोल दिए हैं। टिकटों की टकटकी खत्म हो गई। इसके साथ ही कहीं भितरघात, खुलाघात, बगावत से जूझते तो कहीं आरोपों और दावों के साथ दोनों दलों के प्रत्याशी राजनीति की बिसात बिछाने में लग गए हैं।
सहानुभूति वोट नहीं मिले, अब अटल जी की भतीजी होंगी सीएम के सामने
कांग्रेस के बाकी 6 सीटों पर नाम घोषित करने के बाद जो तस्वीर बनी है, उसके मुताबिक इन 18 में से 7 सीटें ऐसी हैं, जहां पिछले चुनाव में प्रतिद्वंद्वी रहे प्रत्याशी ही इस बार भी आमने-सामने होंगे। 4 सीटों पर दोनों दलों ने नए प्रत्याशी उतारे हैं। इसी तरह 4 पर भाजपा तो 3 पर कांग्रेस ने प्रत्याशी बदले।
भाजपा ने एक तो कांग्रेस ने तीन विधायकों के टिकट काट दिए। झीरम हमले के बाद सहानुभूति वोट के लिए कांग्रेस ने 2013 में राजनांदगांव से शहीद उदय मुदलियार की पत्नी अलका मुदलियार को टिकट दिया था। अलका चुनाव हार गईं। इस बार कांग्रेस ने भाजपा के डॉ. रमन सिंह के मुकाबले पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी करुणा शुक्ला को टिकट दिया है।
डोंगरगढ़ में भी हर बार प्रत्याशी बदलने का ट्रेंड रहा है। इस बार भाजपा ने वर्तमान विधायक सरोजनी बंजारे को फिर से मौका दिया है, जबकि कांग्रेस ने भुनेश्वर बघेल को उतारा है। अंतागढ़ में उपचुनाव के दौरान कांग्रेस के प्रत्याशी रहे मंतूराम पवार के भाजपा में जाने के कारण खाली हुई जगह पर रिटायर्ड थानेदार अनूप नाग को प्रत्याशी बनाया है।
भाजपा ने यहां स्थानीय गुटबाजी को साधने के लिए सांसद विक्रम उसेंडी को मैदान में उतारा है। इसी तरह जगदलपुर में कांग्रेस ने व्यापारी वर्ग के बीच में अच्छी पकड़ रखने वाले रेखचंद जैन को संतोष बाफना के खिलाफ उतारा है। रेखचंद 2008 में भी कांग्रेस के उम्मीदवार थे। तब उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।
इधर, डोंगरगांव में भाजपा ने पूर्व सांसद मधुसूदन यादव को पहली बार उतारा है। भानुप्रतापपुर से पूर्व में विधायक रहे देवलाल दुग्गा को मौका दिया है। केशकाल में जातीय समीकरण को ध्यान में रखकर नए चेहरे हरिशंकर नेताम को टिकट दिया है, जबकि चित्रकोट से 2008 में विधायक चुने गए लच्छूराम कश्यप को फिर से मौका दिया गया है।
सीटों का समीकरण देख दोनों दलों ने चार सीटों पर चेहरे बदले
पहले चरण की 18 सीटों में से सात सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के पुराने प्रतिद्वंद्वियों के बीच मुकाबला होगा। इनमें से दो भाजपा के पास तो पांच सीटों पर कांग्रेस के विधायक हैं। इसी तरह तीन सीटों कांकेर, खुज्जी और मोहला मानपुर में चेहरे बदल दिए हैं।
विरोध देख चेहरा बदला
2013 के विधानसभा चुनाव में खुज्जी सीट से कांग्रेस के भोलाराम साहू ने जीत दर्ज की थी, लेकिन इस बार उनके खिलाफ स्थानीय स्तर पर काफी विरोध था। इसे देखते हुए पार्टी ने जातीय समीकरण को ध्यान में रखकर भाजपा के प्रत्याशी हिरेंद्र साहू के मुकाबले महिला प्रत्याशी चन्नी साहू को मैदान में उतारा है।
अंतर्कलह का रखा ध्यान
कांकेर से भाजपा ने 2013 में विधायक सुमित्रा मारकोले का टिकट काटकर संजय कोडोपी को उतारा था। अंतर्कलह के कारण भाजपा हार गई, इसलिए इस बार हीरा मरकाम के रूप में नया चेहरे पर दांव लगाया है। इसी तरह कांग्रेस ने विधायक शंकर ध्रुवा की निष्क्रियता की एंटी इन्कमबेंसी की खाई पाटने के लिए पूर्व आईएएस शिशुपाल सोरी को टिकट दिया है।
हर बार बदले गए प्रत्याशी
मोहला-मानपुर की सीट पर हर बार प्रत्याशियों को बदलने का ट्रेंड रहा है। 2013 में भी दोनों दलों ने इस सीट से नए उम्मीदवार उतारे थे। इसे दोहराते हुए फिर से दाेनों दलों ने नए चेहरों को मौका दिया है। भाजपा से कंचनमाला भूआर्य और कांग्रेस से इंद्र शाह मंडावी मैदान में हैं। नक्सल प्रभावित इस सीट के सामाजिक समीकरण जीत-हार तय करते हैं।
गुटबाजी को देखते हुए नाग का टिकट काट उसेंडी को उतारा
अंतागढ़ से भाजपा ने सांसद विक्रम उसेंडी को उतारा है। उसेंडी 2013 में विधायक थे, फिर सांसद बने। उप चुनाव में भाजपा के भोजराज नाग जीते। स्थानीय स्तर पर गुटबाजी के कारण पुरानी सीट पर उसेंडी को ही चुनाव लड़ाने का फैसला किया गया। उप चुनाव में कांग्रेस छोड़ने वाले मंतूराम पवार के स्थान पर कांग्रेस ने पूर्व थानेदार अनूप नाग को प्रत्याशी बनाया है।
इन विधायकों के टिकट कटे
भाजपा से भोजराज नाग अंतागढ़, कांग्रेस से कांकेर विधायक शंकर ध्रुवा, मोहला-मानपुर से तेजकुंवर गोवर्धन नेताम और खुज्जी से भोलाराम साहू।
इन सीटों पर दोनों प्रत्याशी पुराने |
विधानसभा | भाजपा | कांग्रेस |
कोंटा | धनीराम बारसे | कवासी लखमा |
बीजापुर | महेश गागड़ा | विक्रम मंडावी |
दंतेवाड़ा | भीमा मंडावी | देवती कर्मा |
बस्तर | सुभाऊ कश्यप | लखेश्वर बघेल |
नारायणपुर | केदार कश्यप | चंदन कश्यप |
कोंडागांव | लता उसेंडी | मोहन मरकाम |
खैरागढ़ | कोमल जंघेल | गिरवर जंघेल |
जहां दोनों उम्मीदवार नए
विधानसभा | भाजपा | कांग्रेस |
कांकेर | हीरा मरकाम | शिशुपाल सोरी |
खुज्जी | हिरेंद्र साहू | चन्नी साहू |
मोहला मानपुर | कंचनमाला भूआर्य | इंदर शाह मंडावी |
अंतागढ़ | विक्रम उसेंडी | अनूप नाग |
यहां कांग्रेस लाई नए चेहरे
विधानसभा | प्रत्याशी |
राजनांदगांव | करुणा शुक्ला |
डोंगरगढ़ | भुनेश्वर बघेल |
जगदलपुर | रेखचंद जैन |
यहां भाजपा के चेहरे नए
विधानसभा | प्रत्याशी |
डोंगरगांव | मधुसूदन यादव |
भानुप्रतापपुर | देवलाल दुग्गा |
केशकाल | हरिशंकर नेताम |
चित्रकोट | लच्छूराम कश्यप |
ऐसे ट्रेंड बदलती रही हैं पहले चरण की वोटिंग वाली ये सीटें
बस्तर: जिसकी बात पसंद, उधर झुकता है वोटरों का तराजू
बस्तर की 12 सीटों की बात करें तो छत्तीसगढ़ बनने से पहले ये कांग्रेस का गढ़ मानी जाती थीं। 2003 में भाजपा ने यहां 9 सीटें जीती थीं, जबकि 2008 में क्लीन स्वीप करते हुए 11 सीटों पर जीत दर्ज की। 1990 के चुनाव में भी भाजपा ने यहां 8 सीटें जीतकर दमदार उपस्थिति दर्ज की थी। हालांकि कांग्रेस ने 1985, 1998 में 11 और 2013 में 8 सीटें जीती थीं। 1993 का चुनाव एकमात्र ऐसा चुनाव है, जिसमें दोनों ही दलों ने 5 सीटों पर जीत दर्ज की। इस चुनाव में सीपीआई को भी 2 सीटें मिली थीं।
राजनांदगांव : छह सीटों में से तीन पर नोटा रहा है निर्णायक
पहले चरण में राजनांदगांव जिले की 6 विधानसभा सीटों खैरागढ़, डोंगरगढ़, राजनांदगांव, डोंगरगांव, खुज्जी, मोहलामानपुर में चुनाव हो रहे हैं। इनमें से तीन सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवारों के जीत-हार के अंतर से ज्यादा वोट नोटा को पड़े हैं। ये तीनों सीटें फिलहाल कांग्रेस के पास हैं। डोंगरगांव सीट पर नोटा पर 4062 वोट पड़े हैं, जबकि इस सीट पर जीत-हार का अंतर महज 1698 वोट का है। खैरागढ़ सीट पर जीत-हार का अंतर 2190 है, जबकि नोटा को 4643 वोट मिले हैं।
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