अमृतसर. ट्रैक के पास नीरज की लाश पड़ी थी। उसके पिता सभी को दूर हटने के लिए कह रहे थे। उसके शब्द थे, ‘‘कोई ध्यान दो, इसे उठाकर ले चलो, यह मेरा बेटा है।’’ फिर वे दहाड़ मारकर रो पड़े। एक पीड़ित ने बताया, ‘‘मैं अपने बच्चे को खिलौने और मिठाइयां दिलवाने की बात कहकर घर से लाया था। सोचा था कि वह रावण दहन देखने के बाद खुश होगा, लेकिन कुछ सेकंड में ही सब कुछ तबाह हो गया। मैं तो बच गया, लेकिन मेरी जिंदगी उजड़ गई।’’
यह मंजर था जोड़ा फाटक का, जहां रावण दहन देख रहे 200 से ज्यादा लोग दो ट्रेनों की चपेट में आ गए। शुक्रवार शाम हुए इस हादसे में 70 की मौत हो गई और 142 लोग घायल हो गए। मारे गए बच्चों में ज्यादातर की मौत भगदड़ के दौरान पैरों के नीचे कुचले जाने की वजह से हुई।
नीरज के पिता ने कहा, ‘‘काश मैं रोक लेता। आज वह दशहरा देखने के लिए अकेला ही घर से निकल गया था। मुझे तो कुछ भी पता नहीं। किसी ने बताया कि घटना हुई है और मैं मौके पर पहुंच गया। बेटे को ढूंढ रहा था और उसकी लाश मिली। क्या बोलता घर जाकर। एक ही बेटा था, वह भी छोड़कर चला गया।’’
10 साल पहले इसी ट्रैक पर पिता की मौत हुई थी : चार साल से रावण का किरदार निभाने वाले दलबीर सिंह (32) की भी इस हादसे में मौत हो गई। वे रामलीला का मंचन होने के बाद अपनी ड्रेस और स्मृति चिन्ह घर पर रखकर रावण दहन देखने जा रहे थे। उनकी आठ महीने की बेटी है। उनके बड़े भाई ने चश्मदीदों के हवाले से बताया कि दलबीर ने ट्रेन आती देखकर लोगों को ट्रैक से हटने को कहा। ट्रैक से खींचकर तीन लोगों की जान बचाई, लेकिन खुद ट्रेन की चपेट में आ गया। उन्होंने बताया कि 10 साल पहले इसी ट्रैक पर उसके पिता की भी मौत हुई थी।
भगदड़ मची तो माता-पिता से बच्चों का हाथ छूटा : हादसे में ज्यादातर बच्चों की मौत ट्रेन की चपेट में आने से नहीं हुई, बल्कि पैरों से कुचले जाने से हुई। दरअसल, भगदड़ मची तो दूर खड़े माता-पिता के हाथों से उनके बच्चों की उंगलियां छूट गईं और लोग उन्हें रौंदते चले गए। हालात ये थे कि बच्चों की छोटी-छोटी चप्पलें, खिलौने, चाॅकलेट, टाॅफियां रेलवे ट्रैक पर बिखरी थीं। हादसे में कितने बच्चों की मौत हुई है, इसका सही अांकड़ा अभी सामने नहीं आया है। मारे गए बच्चों की उम्र चार साल से लेकर 13 साल है।
पहचानना भी मुश्किल : ट्रेन की चपेट आने से कई लोगों के सिर बुरी तरह कुचल गए। चेहरा पहचानना भी मुश्किल था। कोई बहन का नाम लेकर चिल्ला रहा था, तो कोई बच्चों को खोज रहा था। चश्मदीदों ने बताया कि इस हादसे के बाद पटरियों के दोनों ओर खून से सनी लाशें पड़ीं थीं। बड़ी संख्या में लोग अपने परिजन की तलाश में जुटे थे। चारों तरफ चीख-पुकार सुनाई दे रही थी। किसी के हाथ कटे हुए थे तो किसी के पैर। लोग लाशों में अपनों के जिंदा होने की तलाश कर रहे थे।
स्थानीय लोगों ने कंबल लाकर दिए : मौके पर रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए सबसे पहले पुलिस पहुंची। घटनास्थल के आसपास रह रहे लोग भी मदद के लिए आगे आए। उन्होंने लाशों को ढकने और उठाने के लिए घरों से चादरें और कंबल लाकर दिए। लाशों के कई टुकड़े हो गए थे। एक पुलिसवाले ने बताया कि लाशें उठाते वक्त समझ नहीं आ रहा था कि किसका पैर है और किसका हाथ है।
बेटे को ढूंढते हुए पहुंचा, ट्रैक पर मिली लाश
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