Saturday, 24th May 2025

नक्सल क्षेत्रों में ऐसे लोकतंत्र की अलख जगा रहा 'तेंदूमंता अभियान'

Mon, Oct 15, 2018 6:17 PM

रायपुर । बस्तर के नक्सल प्रभावित इलाकों में चुनाव के दौरान नेताओं और प्रशासनिक अमले का पहुंच पाना लगभग असंभव हो गया है। नक्सलियों ने जगह-जगह चुनाव और लोकतंत्र विरोधी पोस्टर बैनर टांग रखे हैं। इन पोस्टरों में चुनाव का बहिष्कार करने, प्रचार में आने वाले नेताओं को मार भगाने या जन अदालत में लाने, अब तक क्या किया यह सवाल उठाने की बात कही गई है।

नक्सलियों ने कहा है कि केंद्र सरकार ने वादे तो बहुत किए थे लेकिन पिछले चार साल से पेट्रोल का दाम बढ़ाने के सिवा कुछ नहीं किया। ऐसे में चुनाव का कोई मायने नहीं रह जाता। जाहिर है कि ऐसे इलाके में जहां नक्सली हावी हैं वहां चुनाव प्रचार के लिए जाना या मतदाताओं को मतदान के लिए प्रेरित करना बेहद कठिन काम है।

 

प्रशासनिक अमला जा नहीं पा रहा है तो मतदाता जागरूकता का काम पुलिस ने अपने हाथों में ले लिया है। सुकमा पुलिस तेंदूमंता अभियान के तहत नक्सल प्रभावित गांवों में जा रही है और आदिवासियों को लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित कर रही है।

दो वर्ष पहले शुरू किया अभियान 

सुकमा पुलिस ने करीब दो वर्ष पहले तेंदूमंता अभियान शुरू किया था। इस अभियान के तहत पुलिस के अधिकारी और जवान प्रशासनिक अधिकारियों को साथ लेकर नक्सल प्रभावित गांवों में जाते हैं और चौपाल लगाकर ग्रामीणों की समस्या सुनते हैं।

टीम में डॉक्टर होते हैं जो बीमारों को तत्काल उपचार करते हैं। पीएचई का अमला गांव के खराब हैंडपंप को तुरंत दुरूस्त कर देता है। स्कूल छोड़ चुके बच्चों को स्कूल भेजने के लिए तैयार किया जाता है। खिलाड़ी प्रतिभाओं की तलाश की जाती है।

आदिवासियों को बताया जाता है कि नक्सली आपके दोस्त नहीं दुश्मन हैं। इस अभियान की शुरूआत दोरनापाल के एसडीओपी विवेक शुक्ला ने की थी। अभियान का उद्देश्य इलाके में बिना खून खराबे के शांति की स्थापना करना है। धीरे-धीरे तेंदूमंता अभियान ने काफी लोकप्रियता भी हासिल कर ली है।

अभियान में गए अफसर मौके पर ही सिविक एक्शन प्रोग्राम के तहत ग्रामीणों को उनकी जरूरत की सामग्री का वितरण भी करते हैं। पहले इन इलाकों में जहां ग्रामीण पुलिस को देखते ही भागने लगते थे अब उनका इंतजार करते हैं। इसी बात का फायदा मतदाता जागरूकता के लिए उठाया जा रहा है। ग्रामीणों का पुलिस के प्रति जो भरोसा जागा है उसे लोकतंत्र के प्रति भरोसे में बदलने की कोशिश की जा रही है।

 

 

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