रायपुर. छत्तीसगढ़ राज्य का चौथा विधानसभा चुनाव सिर पर खड़ा है। दलों की रणनीति करवट लेने लगी है। विधायक, हारे हुए प्रत्याशी और नए चेहरे मतदाताओं के मन की थाह लेने में जुटे हैं। पार्टियों की टिकट जब कटे, अभी तो हर दल से कई-कई दावेदार जनसंपर्क में लगे हुए हैं। ऐसे में मतदाताओं और दावेदारों के बीच बातचीत का केंद्र हैं वे मुद्दे जो तकरीबन राज्य बनने के बाद से आज तक बने हुए हैं। पिछले पांच सालों में कुछ नए मुद्दे भी पैदा हुए। छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार 15 बरस पूरे करने वाली है। इसके पहले कांग्रेस के तीन साल और...। लगभग दो दशक होने को है नया राज्य बने। इस लंबे दौर में शहर से लेकर गांव और मझरे-टोलों तक विकास के पर्याय काफी बदल चुके हैं। दैनिक भास्कर ने राज्य के पांच संभागों की सभी 90 सीटों की नब्ज टटोली। पता चला कि स्कूल-आंगनबाड़ी जैसी मांगों की जगह अब मेडिकल, इंजीनियरिंग कॉलेज, मोबाइल कनेक्टिविटी ने ले ली है। हां, भीतरी इलाकों में सड़क, पुल-पुलिया, अस्पताल और सिंचाई सुविधाओं की शाश्वत मांगें आज भी चुनावी मुद्दे बने हुए हैं। एक महीने बाद राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं। हमने रियलिटी चेक की कि आखिर विधायकों ने अपने दावों-वादों पर कितना काम किया। इन विधानसभाओं की जनता और पराजित प्रत्याशियों से भी जाना कि क्षेत्र की जरूरतें क्या हैं?
पीने के पानी का समुचित इंतजाम आज तक नहीं, कई गांवों में दूसरे गांवों से पानी लाना पड़ता है
खेल सुविधाएं। छोटे और बड़े शहरों में भी खेल मैदान बनाने की जरूरत, खिलाड़ियों को चाहिए सुविधाएं
जनजातियों का जाति प्रमाण-पत्र बनाने में आ रही परेशानी को लगातार विवाद खड़े हुए।
सरगुजा, कोरबा, महासमुंद, धरमजयगढ़ इलाके में हाथियों के उत्पात की वर्षों पुरानी समस्या, दर्जनों मौतें भी
रायपुर-बिलासपुर फोरलेन प्रोजेक्ट का काम बेहद लेटलतीफ, हाईकोर्ट की मॉनिटरिंग के बाद भी काम में तेजी नहीं
बस्तर में नक्सलवाद आज भी बड़े मुद्दे के रूप में बरकरार, यहां की राजनीति इसी के इर्द-गिर्द
बिलासपुर में दशकभर पुराना अंडरग्राउंड सीवरेज प्रोजेक्ट बड़ा मुद्दा, रोजाना सड़कें धंस रहीं
कर्ज से दबे किसानों की खुदकुशी। खासकर दुर्ग संभाग के गांवों में ऐसे मामले अधिक आए
रायगढ़ में केलो परियोजना 20 साल से लंबित है। यह पूरी हुई तो क्षेत्र के सात हजार एकड़ खेत सिंचित होंगे
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