मल्टीमीडिया। माता के सभी 51 पीठों पर नवरात्र के दौरान भक्त विशेष रूप से माता के दर्शनों के लिए एकत्रित होते हैं। जिनके लिए वहां जाना संभव नहीं होता है, वह अपने निवास के निकट ही माता के मंदिर में दर्शन कर लेते हैं। नवरात्र शब्द, नव अहोरात्रों का बोध करता है। इस समय शक्ति के नव रूपों की उपासना की जाती है। रात्रि शब्द सिद्धि का प्रतीक है। उपासना और सिद्धियों के लिए दिन से अधिक रात्रियों को महत्व दिया जाता है।
हिन्दू धर्म में अधिकतर पर्व रात्रियों में ही मनाए जाते हैं। रात्रि में मनाए जाने वाले पर्वों में दीवाली, होलिका दहन, दशहरा आदि आते हैं। शिवरात्रि और नवरात्र भी इनमें से एक है। रात्रि समय में जिन पर्वों को मनाया जाता है, उन पर्वों में सिद्धि प्राप्ति के कार्य विशेष रुप से किए जाते हैं। नवरात्र के साथ रात्रि जोड़ने का भी यही अर्थ है कि माता शक्ति के इन नौ दिनों की रात्रियों को मनन व चिंतन के लिए प्रयोग करना चाहिए।
चैत्र नवरात्र मां भगवती जगत जननी को आह्वान कर दुष्टात्माओं का नाश करने के लिए जगाया जाता है। प्रत्येक नरनारी जो हिन्दू धर्म की आस्था से जुड़े हैं वे किसी न किसी रूप में कहीं न कहीं देवी की उपासना करते ही हैं। फिर चाहे व्रत रखें, मंत्र जाप करें, अनुष्ठान करें या अपनी-अपनी श्रद्धा-भक्ति अनुसार कर्म करते रहें। कहा जाता है कि वेद, पुराण व शास्त्र साक्षी हैं कि जब-जब किसी आसुरी शक्तियों ने अत्याचार व प्राकृतिक आपदाओं द्वारा मानव जीवन को तबाह करने की कोशिश की तब- तब दैवीय शक्तियों का अवतरण हुआ।
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