डीडी वैष्णव, जोधपुर. सैन्य बजट में कमी के चलते आधुनिकीकरण के कई प्रोजेक्ट पर ब्रेक लग गया। पाकिस्तान से सटी पश्चिमी सरहद के पास चल रहे सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स समय पर फंड नहीं मिलने के कारण अटक गए हैं। करीब 1000 करोड़ की लागत के इन प्रोजेक्ट्स के लिए फंड नहीं मिलने से ठेकेदारों के कार्यों का भुगतान अटका हुआ है। हालांकि, उन्होंने अभी तक काम बंद तो नहीं किया, लेकिन उनका कहना है कि यदि ऐसे ही हालात रहे तो काम रोकना पड़ेगा।
कोई प्रोजेक्ट पूरी तरह ठप नहीं हैं, लेकिन ये काम तय समय से साल भर देरी से चल रहे हैं। ऐसे में इनकी लागत बढ़ने की आशंका है। वहीं, इससे करीब 10-12 हजार दिहाड़ी मजदूरों की रोजी-रोटी पर भी संकट छा गया। सेना रक्षा मामलों की स्थायी संसदीय समिति के समक्ष रक्षा बजट में कमी का मुद्दा फरवरी में उठा चुकी है।
थलसेना के तत्कालीन वाइस चीफ लेफ्टिनेंट जनरल शरतचंद्र ने कहा था कि चीन और पाकिस्तान से दो मोर्चों पर जंग के खतरों को देखते हुए सेना के आधुनिकीकरण को गति देने की जरूरत है। वर्ष 2018-19 का रक्षा बजट सेना के लिए एक झटके से कम नहीं है। आधुनिकीकरण के लिए 21 हजार 338 करोड़ रुपए काफी कम हैं।
बिल जमा कराने के 7 माह बाद भी भुगतान नहीं: एमईएस के जोधपुर संभाग में करीब 200 करोड़ रुपए के बिल अक्टूबर 2017 से अटके पड़े थे। इनका भुगतान इस साल अप्रैल में एक साथ किया गया। ऐसा पहली बार हुआ है, जब सैन्य प्रोजेक्ट फंड के अभाव में प्रभावित हो रहे हैं, जबकि यहां बिल सब्मिट करते ही 24 घंटे में चेक से भुगतान कर दिया जाता था।
एमईएस बिल्डर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के चेयरमैन अरविंद मित्तल का कहना है कि पिछले सात माह से निर्माण कार्यों के बिल अटके हैं। पैसों के अभाव में श्रमिकों को समय पर भुगतान नहीं हो पा रहा और काम चालू रखने के लिए बाजार से मटीरियल खरीदने में भी परेशानी आ रही है। इस बारे में कमांडर वर्कर्स इंजीनियर के एसई से बात करने का प्रयास किया, लेकिन उन्होंने उच्चस्तरीय मामला बता जानकारी देने से इनकार कर दिया।
पहले महंगी बजरी मंगवा चलाया काम, अब सीमेंट महंगा होने से बढ़ीं मुश्किलें : एमईएस से भुगतान तो अटका हुआ है ही, अब सीमेंट के दाम बढ़ने से भी प्रोजेक्ट पर संकट हो गया हैं। साल भर से बजरी के खनन पर रोक के चलते पहले महंगे दाम पर बजरी मंगवा काम पूरा किया जा रहा था। अब सीमेंट प्रति बैग सौ रुपए तक महंगा हो गया है। यानी सवा दो सौ रुपए में सीमेंट का एक बैग मिल रहा है।
एमईएस बिल्डर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के सचिव राजीव चौधरी व वाइस प्रेसिडेंट नरेश दवे का कहना है कि फंड के भुगतान के लिए रक्षा मंत्री से लेकर पीएमओ तक ज्ञापन भेजे जा चुके हैं, लेकिन प्रोजेक्ट की अटकी हुई राशि नहीं मिल रही हैं। सबसे ज्यादा असर एशिया के सबसे बड़े ग्रीन कैंट जैसलमेर के मॉर्डन मिलिट्री स्टेशन के निर्माण पर पड़ रहा है।
पश्चिमी सीमा पर सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण ये प्रोजेक्ट हो रहे प्रभावित
1. जोधपुर एयरबेस का मॉडर्नाइजेशन प्रोग्राम। रनवे विस्तार, टैक्सी-वे सहित चार बड़े प्रोजेक्ट, लागत 100 करोड़
2. बनाड़ स्थित आयुध डिपो में डंप यार्ड और अन्य महत्वपूर्ण निर्माण, लागत 40 से 50 करोड़ रुपए।
3. जोधपुर स्थित कोणार्क कोर मुख्यालय सहित आसपास के छोटे सैन्य स्टेशन पर सालाना मेंटेनेंस व रिपेयरिंग के काम, लागत 50 से 60 करोड़।
4. जैसलमेर में एशिया के पहले मॉडर्न मिलिट्री स्टेशन निर्माण, लागत 600 करोड़।
5. बाड़मेर के जालीपा व जसई सैन्य स्टेशन पर महत्वपूर्ण इन्फ्रास्ट्रक्चर व आवास निर्माण, लागत 100 से 125 करोड़ रुपए।
6. जोधपुर सैन्य स्टेशन में सोलर पाॅवर प्रोजेक्ट, लागत 40 करोड़।
*(लागत व कार्य एमईएस बिल्डर्स एसोसिएशन के अनुसार)
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