भोपाल। जिस डर से 25 साल पहले श्योपुर के पालपुर कुनो अभयारण्य की नींव रखी गई। वह खतरा अब सिर पर है। 1412 वर्ग किमी में फैले गुजरात के गीर अभयारण्य में वर्तमान में 523 बब्बर शेर हैं। इनमें से 23 की मौत पिछले तीन हफ्ते में कैनाइन डिस्टेंपर वायरस और प्रोटोजोआ इन्फेक्शन से हो गई है। इस पर सुप्रीम कोर्ट भी चिंतित है, लेकिन गुजरात सरकार शेरों को पालपुर कुनो भेजने को तैयार नहीं है।
दो हफ्ते पहले भोपाल में आयोजित दोनों प्रदेश के अफसरों की बैठक में भी शेरों की शिफ्टिंग पर बात नहीं बनी। गुजरात शेरों को अपनी अस्मिता से जोड़कर देख रहा है और विशेषज्ञों का कहना है कि जब शेर ही नहीं रहेंगे, तो अस्मिता कैसी।
शेरों की मौत पर वन्यप्राणी विशेषज्ञ सक्रिय हो गए हैं। उनका कहना है कि गुजरात सरकार बड़प्पन का परिचय देते हुए मप्र को शेर दे, ताकि शेरों की यह प्रजाति इतिहास न बने। सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार से शेरों की मौत का कारण पूछा है। गुजरात के वनमंत्री गणपत वसावा ने शेरों की मौत कैनाइन डिस्टेंपर वायरस और प्रोटोजोआ इन्फेक्शन से होने की पुष्टि की है। विशेषज्ञ बताते हैं कि छोटी जगह में ज्यादा आबादी होने के कारण वायरस की सक्रियता बढ़ जाती है।
ये है मामला
साल 1994 में अफ्रीका के तीन हजार वर्ग किमी में फैले सेरेन्गेटी नेशनल पार्क तंजानिया में कैनाइन डिस्टेंपर वायरस से पार्क के 25 फीसदी शेरों की मौत हुई थी। इसके बाद केंद्र सरकार ने एहतियातन कदम उठाते हुए गीर के शेरों के लिए दूसरा रहवास क्षेत्र विकसित करने को कहा था।
भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून के विशेषज्ञों ने इसके लिए पालपुर कुनो के जंगल को बेहतर बताया था। तभी से राज्य सरकार अभयारण्य का विकास कर रही है। वर्ष 2006 में शेरों के लिए अभयारण्य तैयार भी हो चुका है, लेकिन गुजरात सरकार शेर देने को तैयार नहीं हैं। यहां तक कि गुजरात की मांग पर मध्य प्रदेश सरकार ने कुनो का क्षेत्रफल भी बढ़ा दिया है और उसे नेशनल पार्क बनाने की कवायद भी शुरू कर दी है। अभयारण्य बनाने के लिए यहां से 24 गांवों को हटाकर दूसरी जगह बसाया गया है।
छोटी आबादी में तेजी से असर करता है वायरस
वन्यजीव विशेषज्ञ और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. डॉ. फैयाज कुदसर कहते हैं कि, कैनाइन डिस्टेंपर वायरस छोटी आबादी में तेजी से काम करता है। यदि यह वायरस सक्रिय है, तो स्थिति बहुत विषम है। ऐसे में इस प्रजाति को बचाने के लिए अलग-अलग क्षेत्रों में रहवास क्षेत्र विकसित करने होंगे। तभी अनुवांशिकता में सुधार की उम्मीद की जा सकती है।
वन विहार नेशनल पार्क भोपाल के डॉ. अतुल गुप्ता भी इस वायरस को खतरनाक बताते हैं। वे कहते हैं कि इसकी पर्याप्त रोकथाम नहीं की गई तो उस क्षेत्र में रहने वाले वन्यप्राणी खतरे में हैं।
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